Friday, December 9, 2011

'लेडिस' से त्रस्त जेंट्स




हमारे देश में एक तरफ तो महिलाओं की बराबर की हिस्सेदारी की बात होती है, तो वहीँ दूसरी ओर महिलायें खुद महिला होने का फायदा उठाती हैं. जी नहीं, ये कोई नारीवाद के ऊपर लेख नहीं है...अरे महाराज पढ़िए ना आगे...

१. आपने तीन महीने पहले ट्रेन की टिकट कटवाई, लोअर बर्थ मिली, आप समय से प्लेटफार्म पहुंचे, ट्रेन में चढ़े, सामान रखा...थोडा सुस्ता कर चश्मा निकाल कर अखबार पढना चालू ही किया था की किसी 'भाई साब' ने कंधे पर ऊँगली घोंप कर कहा - "भाई साब, ऊपर वाले बर्थ पे चल जाईयेगा? 'लेडिस' हैं साथ में.

२. सुबह सुबह आप नहा धो कर इस्त्री की हुई शर्ट पहन कर घर से निकले, निकलते ही सामने एक ऑटो वाला दिखा, जिसमे सिर्फ एक ही सीट बची थी (एक सीट आपकी नजर में, ऑटो वाले की नजर से तो हर कांटी-खूंटी पर लोग लटकाए जा सकते हैं) .. थोड़े दूर आगे जाते ही किसी महिला ने रुकने के लिए हाथ दिया. आप इधर उधर देख रहे हैं, इतने में एक ऊँगली ने फिर से आपके कंधे को घोंपा और कहा "आगे चल आईये, 'लेडिस' बैठेंगी.

३. लोकल बसों में, महिलाओं के लिए कुछ सीटें आरक्षित होती हैं, जिसपे आप बैठने की जुर्रत नहीं कर सकते. इसके अलावा, ड्राइवर के सीट के आजू बाजू वाले सीट पर भी उन्ही का कब्ज़ा रहता है..गीयर बॉक्स से लेकर टूल बॉक्स तक. जैसे कोई वी आई पी लाउंज हो. ड्राइवर बस चलाने के अलावा डी जे का भी काम करता जा रहा है, बस अपनी रफ़्तार से चल रही है....ड्राइवर चींsss करके ब्रेक लगा रहा है...आप किसी तरह एक पैर पर खड़े हैं, इतने में किसी कब्रिस्तान के कब्र से निकलती हुई हाथ की तरह एक हाथ आगे बढ़ा, और आपके कंधे पे ऊँगली घोंप कर कहा "जरा साईड़ हटियेगा, 'लेडिस' को जाना है"

४. आप शाम को दफ्तर से घर जा रहे हैं, आपके पास मोटर साइकिल का कागज़ है, आपने हेलमेट पहना है, लाईसेंस दुरुस्त है, पोलुसन सर्टीफिकेट भी चिम्चिम्मी में रखा हुआ हैं, फिर भी आपको ट्राफिक वाले ने साईड़ में लिया, साथ में दो तीन दू पहिया वालों को और रोका गया जिसमे से एक स्कूटी-धारी महिला भी थीं, उनको देखते ही, मोबाईल भैन के पास खैनी पीट रहे बड़ा साहब बोले.."जाए दो इनको..". आपने गुस्ताखी में पूछ डाला की ऐसा दो भाव क्यूँ? इतने में किसी ने बेंत के डंडे से कंधे पर घोंप कर कहा ..."दिख नहीं रहा है रे अन्हरा...'लेडिस' हैं'



इंडिया साइनिंग ...जा झाड़ के!