Sunday, May 23, 2010
मीटर लोड
आजकल मेरे पिताजी बहुत परेशान हैं! घर में बिजली के मीटर का कुछ तो झमेला है, जिसके चक्कर में कई बार बिजली ऑफिस के चक्कर काट चुके हैं. कहते हैं - 'इ ससुरा सब खाली लूटने खसोटने का काम लगवले है'
बिजली ऑफिस से पिछले ही हफ्ते कोई घर पे मीटर का लोड निरीक्षण करने आने वाला था, बस फिर क्या था? इतना ही काफी था पापा का घर को सर पे उठाने के लिए. रसोईघर से माइक्रोवेव, टोस्टर, जूसर इत्यादी सब बंक बेड में डाल दिए गए. लिविंग रूम में से म्यूजिक सिस्टम का वूफर तक अंदर रख दिया. खैर...चलिए यहाँ तक तो ठीक है लेकिन कमरों में जो ऐ.सी लगा हुआ है उसका क्या किया जाए??? लेकिन मेरे पिताजी के पास उसका भी हल था, उन्होंने उनके सामने अपनी लूंगी और धोती टांग दी! उद्देश्य मात्र इतना था की बिजली विभाग के अफसर की बुरी नज़र उन बिजली खपाऊ उपकरणों पे न पड़ जाएँ नहीं तो बिना वजह के.वी लोड बढ़ा देंगे घर का. फलस्वरूप आपको एक स्थायी राशि(जो की तत्कालीन राशि से कहीं ज्यादा है) अपने बिजली बिल के साथ देनी पड़ेगी जो मेरे पिताजी को किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं था. अब इतनी स्टेजिंग के बाद तो अच्छे अच्छों के छक्के छूट जाएँ फिर वो अफसर ही क्या था. निरीक्षण में अनुकूल परिणाम मिलने के बाद पिताजी ने कहा - भैईल बियाह मोर करब का!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बधाई है! बधाई!!
ReplyDeleteघर में वैभव देख आगन्तुक कम्युनिस्ट हो जाते हैं । ठीक किया नहीं तो अधिक टैक्सेशन का शिकार हो जाते ।
ReplyDeletewaah waah bahut majedaar
ReplyDeleteबढ़िया आँख मिचोनी , एकदम बिजली कि तरह , बरदेखुवा फिर धमक सकते है जी.
ReplyDeleteकाम सध गया...जय हो!! :)
ReplyDeleteअंकल जी का इतना मेहनत काम में तो आया आख़िरकार.... :) चलिए अच्छा हुआ...वैसे बिजली विभाग के चक्कर में मैं तो पड़ा नहीं हूँ लेकिन मेरे पापा बहुत बार पड़ चुके हैं...वैसे मेरे पापा तो अक्सर बिजली विभाग वालों को खतरनाक रूप से बुरा-भला सुना देते हैं....कभी कभी उनकी हरकते ही ऐसी होती हैं की उन्हें बुरा भला सुनाने के अलावा कोई और उपाय भी नहीं :)
ReplyDeleteएतना झमेला का त कोनो जरुरते नहीं था... बिजली बाबू को भिटामिन ‘एम’ फॉर मनी का गोली खिलना चाहिए था.. सब कमवो हो जाता, अऊर बेकार का धोती, लुंगी परदरशनियो से बच जाते.. बुढिया के मरला के डर नहीं होता है, जम के परिकला का डर बेसी होता है!!
ReplyDeleteक्षमा कीजियेगा चाचा जी लेकिन जबसे नितीश कुमार आये हैं तब से उ भीटामिन्वा तानी कम काम कर रहा है! :(
ReplyDeleteचलो अच्छा है.. काम तो बन गया...
ReplyDeleteपर इसका मतलब क्या है... ?
भैईल बियाह मोर करब का!
@Syed - इसका मतलब है की अब तो inspection हो गया...अब जो लगाना है लगाओ!
ReplyDeleteअच्छा लिखा है ! बचाऊ-पन तो मानसिकता का अनिवार्य लक्षण है |
ReplyDeleteऊपर 'निरिक्षण' को 'निरीक्षण' किया जाय , दोनों जगहों पर सुधार की
दरकार है ! आभार !
जी अभी ठीक करते हैं, धन्यवाद!
ReplyDeleteआपने मेरा कमेन्ट 'डिलीट' कर दिया कोई बात नहीं पर 'निरिक्षण' को 'निरीक्षण' कर
ReplyDeleteदिया इसलिए धन्यवाद जरूर कहूंगा ! वैसे मेरे कमेन्ट में महज शिकायत ही नहीं
थी , फिर भी , चूँकि आपका ब्लॉग है इसलिए आपकी ही मर्जी स्वीकार्य ! आभार !
लेकिन हमने आपकी टिपण्णी नहीं हटाई है, देखिये ऊपर. :) और क्यूँ हटाएंगे? आपने तो भलाई की बात कही. किसी से भी सीखने में कोई हर्ज नहीं है और हम वैसे नहीं हैं. :)
ReplyDeleteपता नहीं इसे क्या कहना चाहिए.. अंकल की इमानदारी या अफसर की बेईमानी.. :P
ReplyDeleteवैसे मेरे पापा अभी ६० से काफी दूर हैं .. हा हा हा
ReplyDelete:)
ReplyDeleteएक बार बोला था कि "तुम्हारी पोस्ट भोलेपन और सच्चाई से असाधारण हो जाती है".. एक बार फिर वही बोलूँगा..
गजब का बहाव है..
पीडी से सहमत... सशकत लेखन ;)
ReplyDeleteजी , जाने क्यों कुछ तकनीकी व्यवधान से ऊपर से ९ वीं , १० वीं और ११ वीं टीप उस वक़्त
ReplyDeleteदिख ही नहीं रही थी ! इसलिए मैंने वैसी टीप लिखी | आपको हुई यत्किंच परेशानी के लिए
क्षमाप्रार्थी हूँ !
बिकली महारानी के बारे में तो हम का बोले ?.....जितना मिल जाए उत्ती मेहरबानी ! हर दो -चार साल में यह नाटक हमारे यूपी में भी होता रहता है !
ReplyDeleteacha hai. bhari bharkam post ki jagah sidhe aur saral tarike se byawastha ko dikhana.
ReplyDeleteबड़ी-बड़ी तकनीकें और छोटे-छोटे जुगाड़। वाह!
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDelete