
हमारे देश में एक तरफ तो महिलाओं की बराबर की हिस्सेदारी की बात होती है, तो वहीँ दूसरी ओर महिलायें खुद महिला होने का फायदा उठाती हैं. जी नहीं, ये कोई नारीवाद के ऊपर लेख नहीं है...अरे महाराज पढ़िए ना आगे...
१. आपने तीन महीने पहले ट्रेन की टिकट कटवाई, लोअर बर्थ मिली, आप समय से प्लेटफार्म पहुंचे, ट्रेन में चढ़े, सामान रखा...थोडा सुस्ता कर चश्मा निकाल कर अखबार पढना चालू ही किया था की किसी 'भाई साब' ने कंधे पर ऊँगली घोंप कर कहा - "भाई साब, ऊपर वाले बर्थ पे चल जाईयेगा? 'लेडिस' हैं साथ में.
२. सुबह सुबह आप नहा धो कर इस्त्री की हुई शर्ट पहन कर घर से निकले, निकलते ही सामने एक ऑटो वाला दिखा, जिसमे सिर्फ एक ही सीट बची थी (एक सीट आपकी नजर में, ऑटो वाले की नजर से तो हर कांटी-खूंटी पर लोग लटकाए जा सकते हैं) .. थोड़े दूर आगे जाते ही किसी महिला ने रुकने के लिए हाथ दिया. आप इधर उधर देख रहे हैं, इतने में एक ऊँगली ने फिर से आपके कंधे को घोंपा और कहा "आगे चल आईये, 'लेडिस' बैठेंगी.
३. लोकल बसों में, महिलाओं के लिए कुछ सीटें आरक्षित होती हैं, जिसपे आप बैठने की जुर्रत नहीं कर सकते. इसके अलावा, ड्राइवर के सीट के आजू बाजू वाले सीट पर भी उन्ही का कब्ज़ा रहता है..गीयर बॉक्स से लेकर टूल बॉक्स तक. जैसे कोई वी आई पी लाउंज हो. ड्राइवर बस चलाने के अलावा डी जे का भी काम करता जा रहा है, बस अपनी रफ़्तार से चल रही है....ड्राइवर चींsss करके ब्रेक लगा रहा है...आप किसी तरह एक पैर पर खड़े हैं, इतने में किसी कब्रिस्तान के कब्र से निकलती हुई हाथ की तरह एक हाथ आगे बढ़ा, और आपके कंधे पे ऊँगली घोंप कर कहा "जरा साईड़ हटियेगा, 'लेडिस' को जाना है"
४. आप शाम को दफ्तर से घर जा रहे हैं, आपके पास मोटर साइकिल का कागज़ है, आपने हेलमेट पहना है, लाईसेंस दुरुस्त है, पोलुसन सर्टीफिकेट भी चिम्चिम्मी में रखा हुआ हैं, फिर भी आपको ट्राफिक वाले ने साईड़ में लिया, साथ में दो तीन दू पहिया वालों को और रोका गया जिसमे से एक स्कूटी-धारी महिला भी थीं, उनको देखते ही, मोबाईल भैन के पास खैनी पीट रहे बड़ा साहब बोले.."जाए दो इनको..". आपने गुस्ताखी में पूछ डाला की ऐसा दो भाव क्यूँ? इतने में किसी ने बेंत के डंडे से कंधे पर घोंप कर कहा ..."दिख नहीं रहा है रे अन्हरा...'लेडिस' हैं'

इंडिया साइनिंग ...जा झाड़ के!
हमारे देश में एक तरफ तो महिलाओं की बराबर की हिस्सेदारी की बात होती है, तो वहीँ दूसरी ओर महिलायें खुद महिला होने का फायदा उठाती हैं... just soo true. lot more incidences are there, railway ticket booking. evrywhere
ReplyDeleteआपके इस 'लेडिस' हैं' और आपके दोनों ही के आगे हम नतमस्तक है जी ... ;-)
ReplyDeleteऐसी ही आती रहा करो अच्छा लगता है ...
बहुत दिनों बाद आपका पिटारा खुला है, निकला भी तो दमदार पटाखा।
ReplyDeleteहा हा हा..
ReplyDeleteअभी ट्रेन की सवारी पर ही हूं.
रात एक बजे ट्रेन की हिचकोलों के बीच गहन निद्रा में सपने देख रहा था.
किसी ने टहोका. भाई साहब, आप 46 नंबर पर चले जाएंगे क्या. मेरी नीचे की बर्थ है. साथ में बिटिया है, अकेली हो जाएगी.
शायद मुझे वो जरूरत से ज्यादा भद्र पुरूष समझता था. मन में तो ढेर गाली उठी, पर उसे जैसे तैसे दबाया और वास्तविक भद्रता का नाटक करता हुआ उठ खड़ा हुआ. जी हाँ, कोई समस्या नहीं.
शायद मन में ये खयाल था कि कल को मुझे भी कहीं ऐसी जरूरत पड़ सकती हो..
और, इससे पूर्व की यात्रा में सुबह सात बजे नीचे की बर्थ पर किसी भद्र महिला का कब्जा था. मैं नीचे उतरा तो उसने खाली ही नहीं किया. अंततः कहीं और दूसरे स्थान पर बैठना पड़ा.
:)
और भी भोगे संस्मरण आएँ तो यह आलेख और भी परिपूर्ण हो सकता है..
likhe to guru badhiya hain.
ReplyDeleteहा हा हा... सही कहा...
ReplyDeleteek baar train mae upar ki seat ka resevation thaa
ReplyDeleteneechae baethi hi thee yae soch kar chalegi to upar chali jaayungi
turant jin sajjan ki seat thi apne samney waale mitr sae bolae ki 150 rupay extra diyae haen apni seat kae tt ko neechae ki birth kae
hansi aagyae jabki maene seat kae liyae kehaa hi nahin thaa
wahii side waale sajjan bolae aap ki seat upar haen madam maene kehaa ji haan
bolae aap idhar meri seat lae lae aap kaese upar chahdhae gi sona hi to haen
aap idhar aajyae comfortable rahegaa aap ko
ab unko bhi manaa kartae nahin banaa
yaani decide purush khud hi kar laetae haen kahin bhi jaao ki naari kae liyae kyaa sahii haen
एक बार घर जाना था। ट्रेन टिकेट मिल नहीं रहे थे। थोडी गूगलिंग से पता चला कि यूपी परिवहन निगम की एक साईट भी हैं जहाँ से एसी बसों का ऑनलाईन टिकेट बुक कर सकते हैं। फ़टाफ़ट मैंने देखदाख कर बाकयदा एक सिंगल सीट बुक की। डबल सीट्स का ऑप्शन भी था लेकिन मैं सिंगल सीट पर अकेले लेटकर जाना चाहता था। जब बस में चढा, मेरी सीट पर पहले से एक मैडम थीं, उनका कहना था कि उन्होने डबल सीट बुक की है और मैं उसपर सो जाऊं। उस डबल सीट पर एक और भाईसाहेब थे जिनके साथ वो सीट शेयर करतीं, अगर मैं उन्हे मना करता। वो भाईसाहेब आराम से ड्रिंक करके अपने सफ़र को इंजॉय कर रहे थे। मजबूरन मुझे अपनी बुक्ड सीट छोडकर उन भाईसाहेब को पूरे सफ़र में झेलना पडा, जो रात भर जाने किस किसको अपनी नयी लगी नौकरी के बारे में बताते रहे। मतलब मैं रात भर न सो सका और मैडम सिंगल सीट पर मस्त सोती रहीं और शायद उनमें कोई कर्टसी भी नहीं थी..
ReplyDeleteएक बार ऎसे ही बेस्ट बस में एक महिला को सीट दी। थोडी देर बाद जब उनके बगल की सीट खाली हुयी तो मैं उसपर बैठने के लिये आगे बढा लेकिन उन्होने उसपर हाथ रखते हुये अपने पतिदेव को बुला लिया। मैंने सोचा हमारी याददाश्त कितनी कमजोर होती है...
एकदम स्तुति मार्का पोस्ट :) (हमारी कोई ब्रांच नहीं है टाईप्स)
वा चकाचक ’लेडीस’ पोस्ट :)
ReplyDeleteबिलकुल प्रैक्टिकल और प्रस्तुत करने का ढंग गजब का :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर।
सादर
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है
कुछ हद तक सही है मगर हर जगह नही ………सब जगह सभी तरह के प्राणी पाये जाते हैं ।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteलेडिस हैं भाई लेडिस -
ReplyDeleteवाह जी वाह! आपकी पोस्ट पढ़ कर सुन्दर ज्ञान ही नही मिला
ReplyDeleteबल्कि पोस्ट और टिप्पणियाँ पढकर आनंद ही आ गया.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
आपका सौं वाँ फालोअर बनकर मुझे बहुत हर्ष हो रहा है.
अरे बहुते कम लिखी हो. ऑफिस में जिनकी लेडिस कलिग हैं उनसे भी पूछो जरा :) और कॉलेज के असाइनमेंट, नोट्स ?
ReplyDeleteबेचारे पुरुष! हा हा हा
ReplyDeleteअईसा अईसा सीन दिखाई न बबुनी, कि हंस के मर गए हम...
ReplyDeleteएकदम सही बात कही...
हमरी एगो कसटम्मर थी..अथाह पैसा वाली, लेकिन सराफत से सुन्ना..
हमरे सब इस्टाफ कहते, फलनवा मैडाम जनानी होने का बहुत बेजा फयदा उठाती है...अईसा कोई मरद कहता न तो मार के मुंह फार देते... (यह मत चुप्पे में, हमरा भी था)
सहिये है, लेडीजपने का कुछ मुसीबत है त कुछ जोरदार फयदो है..
चुप चाप टिप्पणी कर दे रहे हैं। ब्लॉग "लेडिस" जो है!
ReplyDeletebahut taklif hui sun kar
ReplyDeleteअरिस्स ...लेडिस लोग ..बप्पा रे बप्पा । एकदम धर के थकूचेगी लेडिस सहेली लोग तुमको रे लेडिस हा हा हा हा
ReplyDeleteलेडिस लोग को खामखा बदनाम किए दे रहे हैं... आखिर कोंचता कौन है हर बार ?
ReplyDeleteaisa to maine bhi kai baar kiya hai :).
ReplyDeleteहाहा.. मस्त है.. खासकर 'लेडिस' शब्द ही हंसाने वाला है..
ReplyDeleteऔर "अन्हरा"?? हाहाहा.. बहुत सही ढोल बजा है पिटारे से!
सही कहा...
ReplyDeleteबहुत सही और सच लिखा आपने , ऐसा सभी के साथ होता है , पर प्रकट सिर्फ आपने ही किया दुस्साहस करके , और ऐसे ही लिखते रहिये
ReplyDeleteएक अलग एवं नए विषय पर , विश्वास और अन्धविश्वास जैसे मामलो पर मेंरे ब्लॉग -
१-मेरे विचार :renikbafna.blogspot.com
२- सत्य कीखोज/In Search of TRUTH : renikjain.blogspot.com
-आर के बाफना
अच्छी खुश्बू है पूर्वांचल की , लिखती रहा करो ये ठीक "morning walk" के जैसा स्वास्थ के लिए लाभकारी है।
ReplyDeleteKeep sharing good blogs.
ReplyDeleteHarshad Mehta Net Worth
आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा, और यहाँ आकर मुझे एक अच्छे ब्लॉग को फॉलो करने का अवसर मिला. मैं भी ब्लॉग लिखता हूँ, और हमेशा अच्छा लिखने की कोशिस करता हूँ. कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आये और मेरा मार्गदर्शन करें.
ReplyDeleteShabd.in