Saturday, September 18, 2010
सीख
लगता है दिमाग में जंग सा लगता जा रहा है. जंग भौतिक सुख का, आरामखोरी का, पैसों का. बस सब कुछ चाहिए....किसी तरह. कभी कभी सोचती हूँ की माँ पापा ने ऐसा तो नहीं सिखाया था फिर ऐसी कैसी हो गयी मैं? स्वार्थी...
पता नहीं ये सिर्फ मेरे साथ ही होता है या सबके साथ की जब भी लाइफ में थोडा 'उड़' रही होती हूँ, तभी इश्वर ऐसी रचना रचता है की धरातल पर आ जाती हूँ. जीवन की कडवी सच्चाई आँखों के सामने तैर जाती है और मुझे आत्मचिंतन करने पर विवश कर देती है.
ऐसी ही एक घटना कुछ समय पहले मेरे साथ हुई जब मैं अपने माँ पापा और भाई के साथ वैष्णो देवी गयी थी. हमने जाने के लिए हैलिकोप्टर सेवा पहले ही बुक कर ली थी लेकिन आने का कुछ पक्का नहीं था. भवन के बाद हम सब पैदल भैरो बाबा के दर्शन करने गए, वहां से जब नीचे जाने की बारी आई, तो मैं और भाई सांझी छत के हैली पैड पर भाग के गए लेकिन उस दिन के लिए हेलिकोप्टर सेवा पूरी तरह से बुक थी सो हमें वहां से खली हाथ लौटना पड़ा. बहुत झुंझलाहट हुई, गुस्सा आया, भुनभुनाते हुए वहां से नीचे उतरना शुरू किया और थोडा आगे गयी ही थी की एक ऐसे व्यक्ति को देखा जिसे देख कर मैं ठिठक गयी, निशब्द हो गयी, और ........पता नहीं .....
वो बिहार से जाकर जालंधर में मजदूरी करता था, बायाँ हाथ नहीं था, बायाँ पैर कई बार टूट चूका था इसलिए वो भी बेकार था, अकेला था, ढेढ़ दिन पहले से ही चढाई शुरू कर दी थी, लगातार ढेढ़ दिन चलकर पूरी तरह से थक कर निढाल हो चुका था, फिर भी भैरो बाबा तक गया. और अब धीरे धीरे लंगडाते हुए नीचे उतर रहा था. एक पुराना फटा चिटा शर्ट, फटी हुई पैंट, शर्ट के बटन से लटकाया हुआ प्रसाद का बैग और कमर में खोंसी हुई एक और छोटी सी पोलिथीन..शायद उसमे थोडा सा कुछ खाने पीने का रखा हुआ था. मैंने रुक कर पूछा "आपको कोई मदद चाहिए?", उसने मना कर दिया. फिर मैंने उसके पैर में बंधी पट्टी के बारे में पूछा, उसने कहा की टूट गया है. "अगर ...प्लास्टर ..हो तो...क्या ठीक हो जायेगा?" मैंने बहुत झिझकते हुए पूछा, उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती थी. फिर उसने बताया की वो पैर इतनी बार टूट चुका है की डाक्टर जवाब दे चुके हैं. ये सब देख सुन के मेरी आत्मा रो रही थी, और मैं उसी 'माँ' से मन ही मन ये सवाल कर रही थी की क्या उनको इसका दुःख नहीं दिखता? मैंने हिम्मत जुटाई और कहा..."...मैं आपके लिए घोडा कर देती हूँ, आप उससे नीचे चले जाईये", उसने कहा "नहीं...रहने दीजिये...मैं चला जाऊँगा...मेरी किस्मत में यही है". उसके इस जवाब से मैं हतप्रभ रह गयी और मैं वहीँ किनारे बैठ कर सोचने लगी की मैं थोड़े देर पहले क्यूँ झुंझला रही थी? क्यूंकि मुझे 'हैलिकोप्टर' नहीं मिला??? छी:....
**मेरा सौभाग्य था की एक फोटो ले पायी मैं उस स्वाभिमानी व्यक्ति के साथ जिसने मुझे मेरे जीवन की इतनी बड़ी सीख दी ....आप सबके साथ वो फोटो बाँट रही हूँ!
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बिल्कुल जंग जिंदगी की अकेले ही लड़ना पड़ती है, और आरामखोरी की आदत केवल सीमित नहीं है, हमारे जैसे भी जाने कितने लोग शामिल हैं। समझ नहीं आता कि क्या किया जाये ...
ReplyDeleteउस व्यक्ति के स्वाभिमान और आपकी संवेदनशीलता को सलाम!...
ReplyDeleteवो गाना याद आता है
दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है
दुनिया का गम देखा तो , मै अपना गम भूल गया
संवेदनशीलता ही तो इंसानों को इंसान बनाती है ,, बिना संवेदना के इंसान निरा पशु ही तो है..
अच्छा संस्मरण ... साधुवाद
बहुत अच्छी पोस्ट है स्तुति.
ReplyDeleteक्या बोलें इसपे हम?
ऐसे ऐसे कितने ही बात सामने आती ही रहती हैं.
बात तो ये है की हम कितना भी इन सब के बारे में सोच लें, कुछ विशेष इन सब के लिए कर नहीं सकते..कहीं न कहीं अपने आप को बहुत छोटा भी महसूस करने लगता हूँ ये सब सुन-देख कर.
अच्छा किया तुमने फोटो यहाँ ब्लॉग पे पोस्ट कर के.
अच्छा लगा.
भगवान ने आपको यह दिखाने भर के लिये ही संभवतः हेलीकॉप्टर में सीट न दिलायी हो। भगवान के खेल निराले होते हैं, कभी बैठकर अपने जीवन की बीत गयी लीकों को ध्यान से देखियेगा।
ReplyDeleteआपके अंदर की इस संवेदनशीलता को जिलाए रखिए। कई बार हम बहुत चाहकर भी किसी और के लिए कुछ नहीं कर पाते हैं। लेकिन उनके साथ इस संवदेनशीलता के साथ व्यवहार भर से बहुत कुछ कर जाते हैं। आपके इस जज्बे को सलाम।
ReplyDeleteऐसे ही प्रेरणायें मिलती हैं जीवन में...
ReplyDeleteआजकल हो कहाँ???
बहुत अच्छी सीख, पूरे समाज के लिए....
ReplyDeleteकई बार ऐसी ही घटनाएँ, ऐसे स्वाभिमानी लोग हमें जीवन की बड़ी सीख दे जाते हैं. लेकिन बच्ची, मैं तो इसे तुम्हारी भी बड़ाई कहूँगी कि तुमने सीख ली क्योंकि भौतिक सुख-सुविधा के आदी लोगों की आँखों में तो सुख-समृद्धि का चश्मा चढ़ जाता है और उन्हें कुछ दिखाई ही नहीं देता. मैं तुम्हें यही शुभकामना दूँगी कि तुम्हारी संवेदनशीलता बनी रहे.
ReplyDeleteउड़ने के लिए पंख नहीं हौसला चाहिए..
ReplyDeleteक्या कहूँ....
ReplyDeleteप्लीज इतना लम्बा अंतराल न रखा करो पोस्टों में...
ReplyDeleteआप अच्छी ब्लॉग्गिंग करती हो स्तुति... बस रेगुलर रहा करो...
ReplyDeletebahut achhi post....
ReplyDeleteman ku choo gayeeee.....
वाकई प्रेरणादाई पोस्ट....आभार.
ReplyDelete____________________
'शब्द-सृजन..." पर आज लोकनायक जे.पी.
आपके ब्लॉग को देखकर लगता है आप कम ही लिखती हैं..लेकिन अच्छा लिखती हैं ...आपकी अगली पोस्ट के इंतज़ार में....
ReplyDeletekahan gayab hain aap itne din se?
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