Sunday, May 15, 2011
बधाई हो..सरकार सुनने लगे हैं!
मेरे नाना नानी को इस महीने की नौ तारीख को थाईलैंड जाना था. जनवरी में उन्होंने अपने पासपोर्ट के लिए अप्लाई कर दिया था. नानाजी का पासपोर्ट समय पर आ गया, लेकिन नानी के पासपोर्ट में समस्या हो रही थी. क्षेत्र के पुलिस विभाग के एक अधिकारी उनसे पुलिस रिपोर्ट भेजने के लिए पैसे की मांग कर रहे थे. नानाजी कुछ पैसे तो दे चुके थे, लेकिन वो और पैसे की मांग कर रहे थे. ये सब तमाशा होते होते अप्रैल आधा बीत चला था और सब की घबराहट बढ़ रही थी, फिर ये बात मुझे पता चली. सुनके बहुत गुस्सा आया. जिस काम के लिए एक पैसे नहीं लगने चाहिए थे, इतने पैसे लगने के बाद भी दो बुजुर्गों को किस तरह 'प्रशाशन' के नाम पर दौड़ाया जा रहा है. मैंने विचार बना लिए की इस बात को मैं ऊपर तक पहुंचा के रहूंगी. मैंने खोज पड़ताल करके झारखंड के डी.जी.पी. का नंबर निकाला, उनको फोन लगाया, उन्हें अपनी समस्या बताई. उन्होंने तुरंत मुझे अपना निजी ई मेल एड्रेस और अपना सेल नंबर दिया और एक कम्प्लेन उनके ई मेल पर भेजने को कहा. मैंने उनको ई मेल भेजा, अगले तीन दिन के अन्दर नानाजी के पास विजिलेंस टीम के डी.एस,पी का फोन आया, पता चला की ईन्क्वाईरि शुरू हो चुकी है और घूसखोर पुलिस महोदय छः महीने के लिए सस्पेंड किये जा चुके हैं. इतना ही नहीं, अगले दिन बोकारो जिला के एस.पी ने खुद भी फोन करके अस्श्वासन दिया. पासपोर्ट हाँथ में आ गया और आजकल नाना नानी थाईलैंड में सैर कर रहे हैं. इस पूरी घटना ने मेरा विशवास फिर से जगा दिया है. मुझे लगता है की हमें प्रयास करने से चूकना नहीं चाहिए. सिर्फ ये कह देना की "अरे कुछ होना जाना नहीं है", सही नहीं है. आप सब भी हिम्मत बनाईये, कदम आगे बढाईये, काहे की भईया हमरे 'सरकार सुनने लगे हैं'.
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बात सही है। हाथ पर हाथ धरे रहने से काम नहीं चलेगा। हमें भ्रष्टाचारी तंत्र के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए। आपने पहल की, अंजाम आपके पक्ष में गया।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ़कर।
वाह! अखिल भारतीय हिन्दी ब्लॉगर संघ आपके इस एक्टिविज्म को अपनी जीत मानते हुये आपको धन्यवाद और अपने को बधाई देता है!
ReplyDeleteसच है एक कोशिश तो करनी ही चाहिए ... कोई कंकड़ तो उछालना ही चाहिए ....
ReplyDeleteचलो अच्छा हुआ, कुछ दिक्कत हुई तो तुम्हे फोन लगाता हूँ :)
ReplyDeleteअक्सर देखा है....कोशिश करने वालों को कामयाबी जरूर मिलती है...पर लोग हैं कि हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं...और फिर शिकायत करते हैं...
ReplyDeleteढेर सारी शब्बाशी इस कोशिश के लिए.
बहुत अछ्छा किया आपने।
ReplyDeleteबहुत सही कदम...शाबाश!!
ReplyDeleteहार कर बैठने की जगह कोशिश तो करनी ही चाहिए....लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सरकारी काम में होने की गारंटी तभी है जबकि या तो कर्मचारी/अफसर जो मांगें उतना मुद्रा दे दो या फिर खूब ऊँची पैरवी लगाओ...
ReplyDeletewell done ...लोग कोशिश तो करते नहीं सिर्फ शिकायत करते हैं.
ReplyDeletebhadhai!!! , par ham to abhi bhi darte hain aise kadam uthane se, pahla khayal hamare man me yahi aata, ki agar police ne kisi tarah se hamare nana nani ko pareshan kiya to ham kya karenge, halaki bihar ki current situation aab sudhar gai hai, isliye aise kadam aab uthaye ja sakte hain.
ReplyDeleteits important that we raise our voice against a wrong issue
ReplyDeletei am happy u did
कई बार हम पहले ही हार मान लेते हैं और यही प्रवृति भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है... इमानदारी पूरी तरह मरी नहीं है अभी..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteभाई वाह, आपके साहस की तो प्रसंशा करनी ही पड़ेगी, अनुकरणीय छाप छोडता है आपका लेख, आपने अपने ब्लॉग का नामकरण बिलकुल सही किया है..बहुत ही सुन्दर लेख और उतना ही बड़ा साहसिक कार्य करने के लिए आपको मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeletethis way is definitely better than Anna's way.. go Stuti
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