Saturday, November 20, 2010

अमेरिका में मुन्नी

हमारे अपार्टमेंट का वार्षिक दिवाली महोत्सव जहाँ बच्चे, बूढ़े और जवान सभी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं! ये गाना मैंने इन बच्चों के लिए तैयार करवाया था, तो देखिये की "मुन्नी" यहाँ अमेरिका में भी कैसे तहलका मचा रही हैं!

Tuesday, November 2, 2010

बिहारी जी.पी.एस सेवा





विज्ञान की अनगिनत सुविधाओं में से एक है जी.पी.एस., जहाँ जाना हो वहां का पता उसमे डालिए, सैटेलाईट की मदद से जी.पी.एस आपको मार्ग-दर्शन करवाएगा. ऐसी सेवा भारत के बड़े राज्यों में शुरू कर दी गयी है, लेकिन मैं सोच रही थी की यही सेवा अगर बिहार में बिहार के ही अनूठे अंदाज़ में शुरू की जायेगी तो कैसा रहेगा? हमें किस किस तरह मार्ग दर्शन करवाएगा?

जी.पी.एस ऑन करते ही कुछ आवाज़ आएगी - "कहाँ जाना है जी? आएँ?? चिरइयांटाड? आच्छा"

-"सीधे ले लीजिये, तनी सा दाहिने...हाँ हाँ ...ई का महाराज...बाएं कीजिये. चलिए ... एकदम बूझईबे नहीं करता है आपको ता". थोडा आगे जाने के बाद, "अब एकरा बाद ता हमको बूझईबे नहीं कर रहा है....एक काम कीजिये ना...गडिया रोक के कौनो से पूछ लीजिये, हर बार अईजे आकर कनफुजिया जाते हैं"
किसी तरह आप अपने गंतव्य पर पहुंचे, वहां से फिर कहीं और जाने की इच्छा हुई, जी पी एस में पता डाला, डालते ही झुंझलाते हुए जवाब मिला "का जी...दिन भर टनडेली बुझाता है आपको ?, माने नहीं सुधरीएगा?"

अब सड़क पर गड्ढे तो होंगे ही, गाडी गड्ढे में जाते ही आवाज आई "का जी? आँख है की आलू का फांक? देखाई नहीं देता है का? ई ट्रकवा वाला सब ना एकदम ओमपुरी का गाल बना के रख दिया है रोड को, सच कह रहे हैं कौनो दिन ऊ सब हमको यूज किया ना...तब देखिएगा, ससुर के नाती को नहीं पहुंचा दिए झंझारपुर के बदले भालेसरगंज न, तब कहियेगा "
आपने जी पी एस के हाँथ जोड़े और आगे का रास्ता बताने का अनुरोध किया....."अब सोझे लीजिये, आss...दूर्र मरदे....स्पीड्वा बढाईये न, का आप भी एकदम सूकसुका के चला रहे हैं. कल्हे पिन्टुआ ले गईस था, ओकर गरल फेरेण्ड के घरे, फुलटुस गंज तरफ. एतना कचरा, धूल फांके की खोंखते खोंखते दू ठो सर्किट ख़राब हो गया. आ पिछलका हफ्ता राम परवेस के बेटी के गौना वाले गाडी में ले गया था नरकटियागंज सब फिट करके , भर रास्ता सब हमरा बगल में रखल हनुमान जी के फोटो के सामने इतना अगरबत्ती आ धुंआ जलाया सब की लगा की ससुरा सब सर्किटवे स्वाहा हो जायेगा"

आप अपनी यात्रा पूरी करके घर पहुँचने ही वाले थे की सोचा साईड में रुक कर तरकारी खरीद ली जाए, लेकिन तभी आवाज आई "ढेर तिडिंग-भिडिंग मत बतियाईये, चुप चाप से घरे चलिए आ मेरा बैटरिया जो भुकभुका रहा है, ओकरा चारज में लगाईये"

"जा झाड के बचवा!!!"