पहला ब्लॉग लिख रही हूँ...प्रोत्साहन के लिए अडवांस में धन्यवाद!
पिछले कुछ दिनों पहले मैं पटना गई! एअरपोर्ट से बहार निकलते ही देखा की कुछ लोग फूल-माला लेकर अपने "प्रिय" नेता का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं और इस से पहले की मैं कुछ और सोच पाती, अचानक मेरे कान के पास कोई चिल्लाया -"झूमे धरती आसमान - राम विलास पासवान"। हमारे "प्रिय" नेताजी दांत चियारते हुए बाहर निकले और सीधे अपनी वातानुकूलित कार में जा बैठे। उनको लेने के लिए फटफटिया का एक दल भी पहुँच था और साथ में एक जीप पे दो-चार लाठिबाज भी थे. देख के यकीन हो गया की मैं पटना में ही हूँ.
एअरपोर्ट पर मुझे लेने के लिए मेरे पिताजी की पुश्तैनी मारुती ८०० आई थी जिसमे ९ लोग सवार थे, जिसमे से ६ लोग पीछे वाली सीट पे "अडजस्ट" हुए थे, आगे साइड वाली सीट पे २ लोग और ड्राईवर खुशकिस्मत था की उसकी सीट पे और कोई "अडजस्ट" नहीं हुआ। किसी तरह ठूंस-ठांस के हम सब बैठ गए और जब ड्राईवर ने मेरा सामान किसी तरह बूट में रखा और गाड़ी आगे बढाने कि कोशिश कि तो गाडी ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। कुछ राहगीरों से धक्का देने को अनुरोध किया गया तो वो घूरने लगे क्यूंकि हमारी पूरी गाडी लदी हुई थी और हम में से कोई भी बहार निकलने को तैयार नहीं था। अरे भाई...निकलते तो हमारा "अडजस्टमेंट" बिगड़ नहीं जाता? खैर...किसी तरह गाडी ने रेंगना शुरू किया लेकिन दम तोड़ दिया। अब ये तय हुआ की हम में से कुछ लोग रिक्शा से घर जायेंगे। मैंने तय किया की मैं रिक्शे से घर जाउंगी क्यूंकि विदेश में रहके रिक्शे की कमी बहुत महसूस हुई। दूर से एक रिक्शे वाला ये सब तमाशा देख रहा थे, मौका पाते ही वो हनहनाता हुआ अपना रिक्शा लेकर हमारी टुटही कार के सामने आ गया। पटना के छिह्होरे रिक्शे वालों कि हरकतों भली भाँती परिचित होते हुए पिताजी ने पहले मोल-भाव करना ठीक समझा। रिक्शे वाले ने ३५ रुपये मांगे, पिताजी ने गुर्राते हुए रिक्शे वाले से कहा कि वो क्या हवाई जहाज से ले जायेगा जो इतने पैसे मांग रहा है? इस पर रिक्शे वाले ने अपने लीचड़ पन को सही साबित करते हुए तपाक से कहा - तो अपनी ही हवाई जहाज से चले जाएये। झेंप कर मैं किसी तरह गाडी के बाहर निकली और सवार हो गयी अपनी प्रिय सवारी पे और हम निकल पड़े घर की ओर।
क्या सरल (और गजब) विवरण है! और यह पहली पोस्ट है तो तय है कि इस ब्लॉग को उत्कृष्टता के साथ लम्बा सफर तय करना है!
ReplyDeleteबहुत बहता हुआ लेखन है। बहुत बधाई। एक दो पोस्टें और लिखिये और सम्भव हो तो चित्रों का भी प्रयोग करें। फिर मैं एक पोस्ट में आपके ब्लॉग का परिचय कवर करना चाहूंगा!
यह पढ़ कर अपनी पुरानी पोस्ट याद आ गयी - रामबिलास का रिक्शा!
ट्विटर पर ज्ञान जी की रिकमेंडेशन से यहाँ पहुँचा !
ReplyDeleteबेहद सहज और सरल, पर प्रभावी लेखन ! नियमित पढ़ने की आकांक्षा रहेगी आपको ! प्रविष्टि का आभार ।
गजब्बे का लिखी हैं आप तो.. और ऊ भी हमरे पटना के बारे में.. :)
ReplyDeleteपिछली दफ़े जब मैं पटना एयरपोर्ट पर उतरा तो रिक्सा वाला मुझे ७० रूपये कि मांग कर बैठा शेखपुरा मोड तक जाने के लिए.. मैंने मना कर दिया और पैदल ही मार लिया वह २ किलोमीटर.. मेरे पास कुछ सामान नहीं था सो मैं उस वक्त फायदे में था.. :)
अच्छा लिखा है ’कि’ और ’की’ का सही स्थान पर प्रयोग करने का प्रयास करें।
ReplyDeleteजैसे शीर्षक मे ’की’ होना था और पहले पैरा के आखिरी वाक्य मे ’कि’
लिखते रहिये। चाहें तो इस टिप्पणी को मिटा दें लेकिन सुधार अवश्य कर लें।
कमाल का भाषा प्रवाह है. बहुत ही सरस लिखा है.
ReplyDeleteयह तो अडजस्टमेंट है जो देश चले जा रहा है.
अ..तो आप पहले ही पोस्ट में छा गए एकदम सचिन की तरह. ठेठ पटनिया अंदाज. इसे कहते हैं जमीन से जुड़े रहना. पहली बार लिखना कोन ची को कहते हैं? आप में गजब की एडजस्टमेंट पॉवर है. यही कारनामा नैनो में कर दिखाइए तो टाटा आपको सम्मानित करेंगे. बलॉग के भंवर में कूदने के लिए बधाई.
ReplyDeleteई ल्लो! हम तो इहां ज्ञान दद्दा की सिफारिश पे पहुंचे थे, बाकी
ReplyDeleteआपको कौनो सिफारिश की जरुरतै नई है, खूबै लिखती हैं आप तो।
बढ़िया लिखा है आपने, बस कुछ जगहों पर मात्रात्मक त्रुटियां खलती है,
आशा है समय के साथ सुधार आ ही जाएगा।
शुभकामनाएं
हमको भी पटना एयरपोर्ट के वीआईपी लांज में बैठकर चना च्वेड़ा खाना याद आ गया । अरे नहीं भाई, मंत्री जी के लिये बना था । चलिये अच्छा ही है नहीं तो संस्कृतियाँ बदलती हैं तो दुख होता है ।
ReplyDeleteये मेरा इण्डिया..
ReplyDeleteपोस्ट मस्त है..
अच्छा लिखा है तुमने !!! तुम्हारे एडजस्टमेंट पॉवर के विवरण ने मुझे एक underwear के विज्ञापन की याद दिला दी जो दूरदर्शन पे बहुत हिट रहा ..खैर underwear से मुझे कुछ नहीं लेना देना था मगर विज्ञापन का प्रस्तुतिकरण बहुत अच्छा था : जहा पे हम इतना कुछ adjust करते है वहा शुक्र है underwear तो एडजस्ट नहीं करना पड़ता और उसमे दिखाया था की कैसे भाईलोग ट्रेन की खिड़की पर भी एडजस्ट करके बैठे थे :-)) यह विज्ञापन याद मुझे इसलिए आ गया क्योंकि मैंने देखा है की चाहे आप reserved कोच में बैठे हो या साधारण कोच में लोग आपसे अपेक्षा रखते है की आप एडजस्ट कर लेंगे थोडा सा ..पुरुष को तो एक बार मना कर दो मान लेगा पर अगर कोई महिला एडजस्ट करने को कहे और आपने मना कर दिया तो बवाल तय है..कोच में आप विलेन तो हो ही गए महिला की दस गाली अलग से सुनो :-))
ReplyDeleteArvind K.Pandey
http://indowaves.instablogs.com/
आभार उस धन्यवाद का जो अपने प्रोफ़ाइल में आपने एडवंस में दे रखा है।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्ञानदत्त जी का, जिनकी संस्तुति पर हम यहाँ पहुँचे।
अनुसरण प्रारंभ कर दिया है।
जारी रहिए…
बहुत सुंदर लिखा है। आगे पढ़ने की लालसा रहेगी। एक बात समझी। पटने जाओ तो रिक्षा में सोच समझ् के बैठो। वर्ना पैदल चलो पीडी की तरह।
ReplyDeleteबेहतरीन किस्सागोही!!! :)
ReplyDeleteस्वागत है फूल माला के साथ...""झूमे धरती आसमान - स्तुति पाण्डे का ब्लॉग महान"
नियमित लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.
सवारी तो शान की ही है
ReplyDeleteइसमें कोई शक नहीं
आखिर अब मैं रिक्शा
भी चलाता हूं।
अब मैं रिक्शा खरीद ही लूँ http://www.abhivyakti-hindi.org/vyangya/2010/rickshaw.htm
स्तुति का ब्लॉग भी पहला
पोस्ट भी पहली
पर ब्लॉग एक ही रहे
सारी गाथा यहां पर ही कहें
जैसी गलती हमने की
आप उसे न दोहरायें।
और हिन्दी के रास्ते से अंग्रेजी के वर्ड वेरीफिकेशन की बाधा को हटाएं।
आपने बिना पढ़े ही धन्यवाद दे दिया... हिंदी ब्लॉग्गिंग है लोग भी बिना आगे पढ़े ही 'बहुत अच्छे' कह के निकल जायेंगे :)
ReplyDeleteऔर बिडम्बना ये ही कि जो कर्ता धर्ता है उन्हें वास्तविकता का पता ही कहाँ होता है जो सुधार का काम करेंगे, उन्हें ना तो ट्रैफिक दीखता है ना महंगाई !
Wah, mujhe wo car ka vivran bahout hi accha laga, ye doosam doos agar aapke America me koi dekh leta to aapko nai car hi gift kar deta :)
ReplyDeleteहमारा कमेंट कहाँ चला गया??
ReplyDeleteदेव जी (ज्ञान जी) के चयन पर पूरा भरोसा है .. उन्हीं के
ReplyDeleteबज़ - शेयर से यहाँ आया हूँ ..
सहज लेखन प्रभावित करता है , बाकी अभी सफ़र लंबा है ही ..
शुभकामनाएं ,,,
ज्ञान जी रिकमेनडेसन !! बढ़िया है !!
ReplyDeleteमास्टर की शुभ-कामनाएं !
@पी डी ...भाई साहब जब इत्ता सज धज के जाओगे अपने घर ...तो रिक्से वाला ७० मांगेगा ही !!
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ReplyDeleteहो सके तो ज्ञान जी से जानकारी प्राप्त कर यह कमेन्ट में वर्ड- वेरीफिकेसन हटा ही दें !
ReplyDeleteज्ञान जी की बज़ से यहा पहुचा हू और शिकायत रहेगी कि हमे उनका रिकमन्डेशन नही मिला.. :)
ReplyDeleteआप अच्छा लिखती है.. बस ऐसे ही लिखते रहिये बाकी बज़ मे तो हमे लगता नही कि आप सोती भी है :P
वाह वाह क्या मस्त लिखा है :) अब जल्दी ही इंडिया जाने का मन हो गया है I... बस लिखते रहिये ...
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ReplyDeleteदेर से टिपण्णी का आभार देने के लिए क्षमा चाहती हूँ, किसी अपने पोस्ट पर किसी कारणवश मैं कमेन्ट लिख नहीं पा रही थी! आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteकमाल का भाषा प्रवाह है. बहुत ही सरस लिखा है.
ReplyDeletekam se kam jindagi to ji rahi hai .jindagi jeena our jinda rahna bahut antar hai .
ReplyDeleteहा हा....मैं अभी कुछ दिन पहले ही पटना गया था, अपनी बहन की सगाई पे...एअरपोर्ट पे जब उतरा तो वहां से मेरे घर(पटेल नगर) के लिए ऑटो वाले और टैक्सी वाले 350-450 रुपये मांग रहे थे :O ...मैंने पापा को भी मन कर दिया था की "आप मत आइयेगा मुझे लेने, मैं खुद आऊंगा.." उस वक़्त सोचा अगर पापा आ जाते तो क्या आराम हो जाता....खैर मैंने अंत में एक रिक्शेवाले को पकड़ा और रुपये में पंहुचा अपने घर... :)
ReplyDeletekitne rupiye me? humse to 35 maanga ...usme bhi papa aankh tared diye..
ReplyDeleteaapki maruti ki adjustment ke baarey main padh kar laga ki hum hi akale nahin hain hi aur bhi hain jo hamari tarah 9 log maruti800 main sawari karte .
ReplyDelete@stuti ji.. hum 40 rupaye mein gaye the :)
ReplyDeleteवाह! भौत खूब! अब घर के किस्से लिखो!
ReplyDeleteमस्त पोस्ट है !
ReplyDeletemazedaar babuni
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