Sunday, June 6, 2010
लघुशंका की शंका
बचपन में टी वी पे जो भी देखती थी, वो बनना चाहती थी. पाइलट से लेकर जासूस तक! कई बार तो मैं खुद ही मम्मी की चीज़ें छुपा कर जासूस बन के उन्हें खोजा करती थी. खेल कूद में बचपन से बहुत रूचि रही है. नानाजी और मामा, दोनों ही राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का प्रतिनिधित्व कर चुके थे, इसलिए मेरे मन में भी कुछ कर दिखने की इच्छा थी. क्रिकेट, बैडमिन्टन, कैरम इत्यादी का हमारे घर में वर्चस्व था लेकिन मुझे तैराकी बहुत अच्छी लगती थी. मध्यमवर्गीय परिवार से होने के कारण खेल कूद को मैं अपना कैरियर नहीं बना सकती थी, सिर्फ पढाई लिखाई ही मेरी संगिनी बन के रह गयीं. मम्मी पापा ने कहा "वो सब करके मैं कर करुँगी??"
विदेश आते ही बचपन की वो सारी इच्छाएं कुलबुलाने लगीं, टेनिस क्लास में नाम लिखवाया...स्कींग सीखने गयी..डांस क्लास गयी और स्वीमिंग लेसन में भी नाम लिखवाया. स्वीमिंग क्लास अभी भी चल रही है, पर अभी बहुत अच्छे से तैरना नहीं आया है.
स्वीमिंग की पहली क्लास में हमें कुछ नियम बताये गए. पहला नियम है सार्वजनिक पूल में जाने से पहले और आने के बाद नहाना. लेकिन बहुत कम ही लोग इसका पालन करते हैं. कुछ लोग तो नहाने के लिए पूल में चले जाते हैं हैं. मैंने अपने अपार्टमेन्ट के पूल में बहुत सारे ऐसे लोग देखे हैं जो लगता है कई दिनों से नहीं नहाये हैं. खैर...वहां तक तो आप क्लोरिन के भरोसे बर्दाश्त भी कर लें लेकिन एक आंकड़े के अनुसार २५% लोग पूल में लघु शंका करते हैं, इसका क्या करें???? हर जगह साफ़ सुथरे प्रसाधन कक्ष बने रहने के बावजूद लोग ऐसा क्यूँ करते हैं ये मेरी समझ से बाहर है. लेकिन इतना सब जानने के बाद मेरी हिम्मत नहीं होती पब्लिक पूल में जाने की. और भी ना जाने क्या क्या दिमाग में आता है...अमेरिकंस तो टीशू पेपर.... खैर छोडिये ....
एक अनुसंधान के अनुसार ऐसा करने वाले लोग दो प्रकार के होते हैं, एक तो वो जिन्हें ऐसे करने से मज़ा आता है(मुझे भी नहीं पता की क्या मज़ा मिलता है), और दूसरे वो जो अपने ब्लाडर की संचालन क्षमता खो चुके हैं. इस ग्रूप के लिए बनाया गया है पानी वाला डाइपर, वाटर प्रूफ डाइपर. पहनिए और काम पर चलिए. और पहली जमात के लोगों के इलाज के लिए बनाया गया है एक प्रकार का केमिकल, जो पूल में "यूरिक एसिड" को प्रकट कर देता है, तो अगर कोई महोदय/महोदया अपना काम कर रहे हैं, ये केमिकल तुरंत "यूरिक एसिड" को लाल कर देता है. और पकडे जानेपर भारी जुर्माना भरना पड़ता है. लेकिन ऐसे लोग तो वहां पकडे जायेंगे जहाँ ये केमिकल होगा, उस पूल का क्या जहाँ सभी भेंडिया धसान मचाये रहते हैं?
क्या कहा? पूल से दूर रहूँ?? हाँ, लगता तो यही है, इस लघुशंका की शंका ने घृणित कर दिया है.
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सुन्दर आलेख. कुछ लोग नियमों को तोड़ने में ही आनन्द पाते हैं. दमित वासनाओं को मौका मिलते ही किसी भी रूप में या रूपांतरित करके प्रदूषण पैदा करना फितरत में होती है.
ReplyDeleteसभी बजाते रहते हैं विदेशों की सफाई का डंका
ReplyDeleteखोल दी आपने पोल उनकी आधार बनाके लघुशंका
रोचक।
ReplyDeleteस्वीमींग पूल में ऐसा भी लोग करते हैं....आज पता चला :)
हमें जो जो बनने की इच्छा होती है, वह हम कोशिश तो करते हैं, परंतु बहुत ही कम लोग वही बन पाते हैं, जो बनना चाहते हैं।
ReplyDeleteस्वीमिंग पुल एक लघुशंका लघुकथा बन पड़ी है, इसी के चलते हम आज तक तैराकी नहीं सीख पाये क्योंकि हमारे यहाँ के तरणताल में भी यही समस्या थी, और पानी लाल नहीं होता था। :D
रोचक पोस्ट! मजेदार! तैरती रहिये, जलपरी बनिये।
ReplyDeleteye to sda se hota aaya hai.... Kya aap duniya ke sudhrne ki rah dekhengi...ydi ha to asambhav hai tumhara tairaki sikhna... ek tenson hazar tenson ko janm deta hai. kuchh savdhaniyo ko apnate hue jari rhne do apna kary.
ReplyDeleteसंजू जी - मैं अभी भी पूल में जाती हूँ लेकिन एक प्राइवेट सेंटर में जहाँ साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है और पानी एकदम साफ़ रहता है. और हाँ...वो वाला केमिकल भी इस्तेमाल होता है वहाँ. :D
ReplyDelete:) इत्ता मीन मेख करोगी त तो सीख चुकी तैराकी... :)
ReplyDelete:D rec center जिंदाबाद, फिलहाल तो.
ReplyDeleteहा हा हा हा...अच्छा हुआ तुम बता दी स्तुति...हम तो अब न जायेंगे स्वीमिंग सीखने को....हा हा हा ...उ केमिकल वाला बात भी मस्त था...क्या क्या लोग दिमाग लगाते हैं चोर को पकड़ने के लिए...हा हा ....खैर, तुम जहाँ जाती है न, हमको भी वहीँ ले जाना जब हम आयेंगे वहां ;)
ReplyDeleteतैरना सीख रही हैं आप, क्या केवल पूल में तैरने के लिये
ReplyDeleteकभी झील में या नदी में तैरने का मन किया तो इस शंका के साथ कैसे पानी में उतरेंगीं जी
प्रणाम स्वीकार करें
Ram Ram .. Yahan to khel doosra hai. Swimming aur Tennis ka nahi yahan to khel susu ka hai...susu ke bahut rochak kisse hain kabhi sunaunga :)
ReplyDeletesahi rahi ye laghushanka ki shanka, bat ko rochak tarike se prastut kiya madam aapne. apan ko ye sab idea hi nai tha.
ReplyDeletebaki sweeming jari rahe aapki,
shubhkamnayein...
अजी, किस किस की शंका को कहाँ कहाँ रोइए,
ReplyDeleteजरा सी गज भर दुनिया है, घोड़े बेचकर सोइए।
:)
ma'm ab ham jo sabji khate hai, us me kaun si sanka ki khad padi rahti hai, bataenge kabhi..
ReplyDeletefilhal chinta chod dijiye
ये (फोटो में) कुर्सी पर बैठके तैर रहा है, क्यों !!
ReplyDeleteआप भी पुल पे तैरतीं हैं !! वा जी वा
अरे नदी, नाले में तैरिये नदी पर बने पुल पर नहीं.
ही ही ही
अपने प्रोफाइल वाले फोटो में आप तैरती हुई सी लग रही हैं.
जलपरी कहीं की.
"बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना"
ReplyDeleteचलो अपना फ़ायदा ये हुआ कि जब कोई कभी पूछे कि क्यों भाई? तैरना नहीं आता? तो यही बात बता के पल्ला झाड़ लेंगे।
वैसे मेरी ज़ाती राय है कि आदमी को तैरना सीखना ज़रूर चाहिए।
@ एक आंकड़े के अनुसार २५% लोग पूल में लघु शंका करते हैं, इसका क्या करें????
ReplyDelete-- इस आंकड़े पर विश्वास न करें!
तैरना तो मुझे भी पसन्द है । यदि बाहर लोग ऐसा करते हैं तो बाहर आकर नहीं तैरेंगे ।
ReplyDeleteये आदत शायद कुछ लोगों में आनुवंशिक है !
ReplyDeleteसार्वजनिक पूल के ये सारे खतरे तो हैं ही। पहले किसी जमाने में जब पानी घरों में नहीं होता था तब लोग नदी, तालाब, कुओं आदि पर नहाते थे, फिर मनुष्य ने विकास किया और घरों में स्नानगृह बनाया। लेकिन उसकी सार्वजनिक स्नान की चाहत शायद मिटी नहीं तो उसने फिर स्वीमिंग पूल बना लिया। अब सामूहिकता में तो सभी कुछ होगा। बेढंगों शरीरों को भी देखना पड़ता है और उनके साथ ही नहाना भी। चलिए अच्छा विषय उठाया मैं भी कल से पूल के बारे में ही सोच रही थी और आज आपकी पोस्ट पढ़ने को मिल गयी।
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट...
ReplyDeleteदुत्तेरी के... एही सवलवा एक बार सलमान खनवा प्रियंका चोपड़ा से पुछा था दस का दम प्रोग्राम में... हम त अईसहूँ उसका कोनो प्रोग्राम अऊर फिलिम नहीं देखते हैं, एही से पता नहीं ऊ का जवाब दी.. हम त साइंस कॉलेगे के पीछे जकर प्रेम से गंगा जी के गोदी में लोग को तैरते देखते थे... गंगा मईया त केतना मैल धो देती हैं... मजा आ गया !!!
ReplyDeleteaaj subah main bhi pehli bar swimming seekhne gayi thi per is hi shanka ke karan pool main nahi ja paai aur ab aapki post ke baad swimming ka khayal hi koso door bhag gaya hai.kya aapne kabhi ganga snan kiya hai?
ReplyDeleteaap ki post padh kar ganga snan ke baad jhujhuri le kar ganga se baaher aate bachhe yaad aa gaye
हा हा हा,
ReplyDeleteइसीलिए अपन ने भी १ महीने सीख कर बंद कर दिया था.. हे हे हे
ReplyDelete@अंजू जी - गंगा स्नान एक दो बार ही किया है, वो भी बहुत बचपन में. लेकिन आप स्विमिंग का ख्याल बनाये रखें...पूल में ऐसे टाइम में जाएँ जब भीड़ न हो या एकदम सुबह के समय. जब पानी री-सयकिल हो कर एकदम स्वच्छ रहता है!
ReplyDeleteMaikya ji Susu, that too in videsh!!!!!!!!
ReplyDeleteHa ha ha ha ha......
Bahut badhiya.....
तभी, नहाने के लिये हमारा बाल्टी-लोटा जिन्दाबाद! इसी लिये गंगामाई में भी नहीं हिले! :)
ReplyDeleteअरे सही कहा....हम भी इसी घिन के कारन पूल में नहीं धंस पाते...
ReplyDeleteवैसे ई वाला केमिकल मिलता कहाँ है,तनिक बताना...जरा हियाँ भी छिड़ककर देखें....हमको तो लगता है पूरा पानीये लाले लाल हो जायेगा...