Wednesday, June 2, 2010
डेबी की डेस्क
डेबी मेरे साथ आई बी एम् में काम करती थीं. वो पिछले १३ साल से आई बी एम् से जुडी हुई थीं, कल उनका विदाई समारोह था. दो वर्ष पहले वो फ्लोरिडा से कोलोराडो ऑन-साईट काम करने के लिए स्थान्तरित हुई थीं. फ्लोरिडा वाला घर बेचा, बच्चों से दूर हुयीं, पोते-पोती और नाती-नातिन से भरा पूरा परिवार छोड़ कर अकेले यहाँ आयीं. अकेले इसलिए क्यूंकि तलाक हो चुका है. यहाँ आकार फिर से नए सिरे से शुरुवात की ही थी की उनके जाने की घोषणा कर दी गयी. डेबी के हिस्से का काम इंडिया आउट सोर्स कर दिया गया.
पिछले हफ्ते सुबह ९ बजे वाली टीम हडल में घोषणा की गयी की डेबी अब हमारे साथ नहीं रहेंगी क्यूंकि उनका काम इंडिया भेजा जा रहा है. अपनी टीम में मैं अकेली भारतीय हूँ. बाकी सब अमेरिकन. ये खबर सुन के समझ में नहीं आया की मैं अपने देश की उन्नति पर खुश होऊं या अपनी मित्र के जाने पर दुःख जताऊँ. कर्म भूमि तो यहीं है न!
किसी ने मुझसे पूछा की मुझे कैसा लगता अगर मेरा काम किसी और को दे दिया जाता और मेरे लिए दो जून की रोटी जुटानी मुश्किल हो जाती? बहुत ज्वलनशील प्रश्न था लेकिन मैंने कहा की मुझे भी उतना ही दुःख होता लेकिन वैश्वीकरण के दौर में हर कोई होड में आगे निकलना चाहता है.
मुझे आज सुबह उनकी डेस्क पे शिफ्ट होने के लिए बोला गया, शिफ्ट हो गयी लेकिन किसी काम में मन नहीं लग रहा था. सोचती रही की इस कठिन समय में कैसे निर्वाह होगा? एक दो बार फोन भी मिलाने की हिम्मत जुटाई लेकिन शायद कम थी. क्या पूछती? सहानुभूति जताती तो वो भी व्यंग लगती, भारतीय हूँ न! . शायद अगले महीने फोन करूँ.... पता नहीं.....
** ये पोस्ट मैं डेबी के डेस्क पे ही बैठ के लिख रही हूँ!
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niraash hone ki jaroorat nahin
ReplyDeleteyahi to insan ka jeevan hai
sabse pahle apne kaam par dhyan dijiye
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
बड़ा ही कठिन क्षण है । निकट के लोगों का दुःख शीघ्र द्रवित कर जाता है, दूर बैठे लोगों की पीड़ा का आभास ही नहीं हो पाता है । डेबीजी को भगवान करे कोई और कार्य मिल जाये और आप की मानसिक ग्लानि को शान्ति मिले । यहाँ भारत में बेरोजगारी के आँकड़े भर पढ़ लेने से निराशा का बवंडर लील लेता है । भारत के उत्थान की प्रार्थना की अर्जी भी लगा दीजियेगा अपने ईश्वर से ।
ReplyDeleteमुझे भी पाता नहीं क्या लिखें यहाँ पे हम...इस तरह के ही एक हालात पे एक फिल्म कुछ दिन पहले देखी, फिर कभी तुम्हे बताऊंगा, उस फिल्म के बाद भी काफी देर तक सोच में रहा मैं....
ReplyDeleteफ़िलहाल तो ज्यादा सोचना मत और अपने काम पे ध्यान देन, और हाँ उन्हें फोन कर ही लेना
आप सब ठीक कह रहे हैं, अपने काम पे ध्यान देना ज़रुरी है...नहीं तो वो दिन दूर नहीं होगा जब मेरी भी विदाई समारोह की तैयारी की जा रही होगी :(
ReplyDeleteअगले हफ्ते फोन भी कर लूंगी.
aapka samvedansheel charitr jhalak raha hai...kuch sambandh aise hi hote hain...
ReplyDeleteहम भारतीय जो हैं...
ReplyDeleteयह सही पकड़ा आपने कि उसे व्यंग लगता... कुछ साल पहले मेरे साथ भी एक ऐसा ही वाकया हुआ था ... वो बहुत अच्छा लड़का था और मुझे भी काम की अदद जरुरत थी... में उसकी सीट पर बैठ कर काम करता था पर काफी दिनों तक उसे महसूस करता रहा.. और तो और उसने २ घंटे मेरे साथ बैठ कर काम को बहुत अपनेपन से समझाया भी था... वो ख़ुशी से नहीं गया था उसे हटाया गया था... यही कारण है की मैं आज भी अपने लिए कोई कुर्सी नहीं मानता.
ReplyDeleteaapki samvedan-sheelta ki parichay deti hai yah post.
ReplyDeletephone jarur kariyega unhe.
bade din bad aaya aapke blog par, pichhli 2 post bhi abhi padhaa,
bhojpuri sikhaiye sab ko udhar aur album nikalwaiye, hamhu wait karte hain..
किसी नजदीकी के दुख से मन दुखी हो ही जाता है। अभी संवेदना प्रकट करने के बजाय, थोडा समय अपने काम पर ज्यादा देंगें तो निराशा से पीछा छूटेगा।
ReplyDeleteकुछ समय बाद फोन कर लीजियेगा।
प्रणाम
इस वैश्विक गलाकाट प्रतियोगिता के दौर में इतनी संवेदनशीलता , धन्य हो आप. वैसे अंकल सैम के देश में, देवियों ओर देवो के साथ ऐसी घटनाये आम है आजकल.
ReplyDeleteइस्तुती बेटा! आज का टाईम में human resource जैसा सब्द बौना हो गया है, आज आदमी commodity बन गया है संस्था के लिए... अमेरिकी माल के जगह हिंदुस्तानी माल सस्ता मिल गया तो अमेरिकी बाहर, इण्डियन अंदर!! तुम तो ‘है प्रीत जहाँ की रीत’ वाले देस की हो इसलिए एतना सोच गई, अऊर हमलोग का भी मन भारी कर गई! बस एही सोच बचा रहे त सबसे बड़ा दौलत है...बहुत अच्छा लगा!!
ReplyDeleteजॉर्ज क्लूनी की पिछले साल आई फिल्म 'Up in the Air' देखिये. जो लोग यह छंटनी का काम करते हैं उनके लिए भी यह कोई खासा अच्छा (?) अनुभव नहीं है.
ReplyDeleteक्या करें... करना पड़ता है. घरों में बढ़िया या मनमाफिक या सस्ते में या नियमित काम न कर पाने वाली बाइयों को नौकरी से निकालकर हम कैसे दूसरी लगा लेते हैं न? यह भी वैसा ही है.
अगर संवेदनशीलता न रहे तो हम में और आतंकवादियों में क्या अंतर रह जायेगा? यही थोड़ी बहुत जमा पूँजी लेकर यहाँ आई हूँ...खोना नहीं चाहती इसको.
ReplyDeleteऔर आप सब का बहुत आभार जिन्होंने मेरी हिम्मत बधाई और आगे बढते रहने की प्रेरणा दी.
@Nishant - कामवाली बाइयों की बात तो सही कही, जो सस्ता और टिकाऊ काम करे वो चलता है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे इनके घर में ही आकर हम इन्हें बेघर कर रहे हैं. इनके पास तो हमारे समाज या परिवार का मज़बूत सपोर्ट सिस्टम भी नहीं है जो इन्हें संभाल ले...
ReplyDeleteयही तो जिन्दगी है यहाँ की..क्या करोगी. बस, काम पर ध्यान दो!!
ReplyDeleteओह आज तो बस पढ के जा रहे हैं , कुछ नहीं कहेंगे , क्योंकि आज की पोस्ट सिर्फ़ महसूस करने वाली है ......काम पर ध्यान तो रखिए ही ।
ReplyDeleteहम्म बात तो सही है..बुरा तो लगता है..पर अभी तो शुरुआत है..जाने ऐसे कितने वाकये आयेंगे जब ऐसी हालातों से दो-चार होना पड़ेगा...ज्यादा सोचो मत और हाँ फ़ोन कर ही लो...ये छोटे छोटे gesture कभी बेकार नहीं जाते...डेबी के दिल में जगह बना लेंगे :)और हमारे देश के प्रति भी उसे उतना मलाल नहीं रहेगा
ReplyDeleteहाँ, सही कहा आपने. मन को थोडा कठोर बनाना पड़ेगा नहीं तो काम नहीं चलेगा. कल कॉल करुँगी डेबी को. :)
ReplyDeleteसंवेदनशील पोस्ट!
ReplyDeleteवैसे नौकरी, खासकर प्राइवेट नौकरी, करते समय हमेशा धौम्य ॠषि के उपदेश याद रखने चाहिये।
१.राजसेवक कितना ही विश्वस्त क्यों न हो ,कितने ही अधिकार उसे क्यों न प्राप्त हों,उसको चाहिये कि सदा पदच्युत होने के लिये तैयार रहे और दरवाजे की ओर देखता रहे.
२.हो सकता ,राजा सुयोग्य व्यक्तियों को छोडकर निरे मूर्खों को ऊंचे पद पर नियुक्त करे. इससे जी छोटा न करना चाहिये.उनसे खूब चौकन्ना रहना चाहिये.
ऋषि के उपदेश विचारणीय हैं....
ReplyDeleteस्तुति जी
ReplyDeleteहम दुखी केवल तभी होते हैं जब इश्वर द्वारा निर्धारित की गयी घटनाओं में अपने मन के अनुसार परिवर्तन चाहते हैं . मुझे लगता है सारी समस्या मन की होती है क्योंकि उसी की वजह से मन नहीं लगना, कार्य में अरुचि होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं
आप मन को इश्वर को समर्पित कीजिये (चाहे सिर्फ पांच मिनट के किये ही सही) एसा मानते हुए की जो हुआ अच्छा हुआ, श्रद्धा पूरी होनी चाहिए
श्रद्धा का कारण भी है और वो यह की आपके जीवन में ऐसा बहुत कुछ है जो आपने तो निश्चित नहीं किया होगा , शायद इश्वर वही शक्ति है जो यह निश्चित करती है
बस ये प्रार्थना कीजिये की हे इश्वर सबका अच्छा हो , सबका मंगल हो , हर दिन होली की खुशियाँ मिले सबको , हर रात दीपावली उजाला हो
कठोर बनने का प्रयत्न न करें आप जैसी है बहुत अच्छी हैं बस इसने इश्वर से प्रार्थना का कंटेन्ट जोड़ दीजिये . स्वभाव के अतिरिक्त आयी कठोरता आप मेंटेन नहीं रख पाएंगी , है ना ??
ReplyDeleteअगर आप देखेंगी तो पाएंगी हर महान , प्रसिद्द, सफल व्यक्ति ऊपर से कठोर और अन्दर से नरम ( अध्यात्मिक ) होता ही है
कठोर बनने का प्रयत्न न करें आप जैसी है बहुत अच्छी हैं बस इसमें इश्वर से प्रार्थना का कंटेन्ट जोड़ दीजिये . स्वभाव के अतिरिक्त आयी कठोरता आप मेंटेन नहीं रख पाएंगी , है ना ??
ReplyDeleteअगर आप देखेंगी तो पाएंगी हर महान , प्रसिद्द, सफल व्यक्ति ऊपर से कठोर और अन्दर से नरम ( अध्यात्मिक ) होता ही है
गौरव जी - आपको कैसे धन्यवाद करूँ? आपने मन में आशा और उल्लास भर दिया! भगवान से प्रार्थना करुँगी की डेबी को जल्दी ही कहीं नौकरी मिल जाए. कभी कभी तो ये सोचती हूँ की मेरी ये छोटी से इ-दुनिया कितनी अपनी है :) Lucky Me!!
ReplyDeleteजब मन से विचारों का कोहरा छंट जायेगा
ReplyDeleteतब वह उल्लास महसूस कराएगा
अपनी डिफाल्ट कंडिशन में जायेगा
ट्रान्सफर करता हूँ थैंक्स आपका उसी इश्वर को
जो हमें सच्चे विचार देता है
अरे? कहीं दूर क्यूँ जाएँ ??
वो अपने दिल में रहता है
अनूप जी की टिपण्णी बहुत कुछ कहती है..
ReplyDeleteवैसे हम क्या कहे हम तो खुद आउटसोर्सिंग की वजह से दाल रोटी खा रहे है..
और हाँ लाईफ कभी रूकती नहीं.. डेबी के लिए नयी ज़िन्दगी बाहें फैलाके खडी है.. डोंट वरी ऊपर वाले का ईमान अभी जिंदा है..
रैकरण ( रेइफिकेसन ) का सच यही है !
ReplyDeleteसही है... वैसे पूरी दुनियां अपनी ही तो है :)
ReplyDeletelife is like this only.why have u deleted ur previous post?
ReplyDeleteअंजू जी - कौन सी पोस्ट की बात कर रही हैं आप? मैंने तो कोई पोस्ट नहीं डिलीट की?
ReplyDeletedarshanshastra ki class
ReplyDeleteवो शायद किसी और ने लिखा होगा...मैंने तो वो पोस्ट नहीं लिखी.
ReplyDeletepata nahin kya gadbad hai maine aapke naam se hi padhi thi aur us per 58 comments bhi thee.shayad kisi ne aap ka naam use kiya ho.mujhe aapke blog ka har din intzar rehta hai.hindi main comment kaise post karun pata nahin hai isliye aise he likh diya.love u
ReplyDeleteThank you Anju ji, that was really sweet of you. हिंदी के लिए आप एक सोफ्ट वेयर डाउनलोड कर सकती हैं, गूगल पर सर्च करने से मिल जायेगा.
ReplyDeleteachhi post kah dene bhar se kaam nahi chalega bhavpoorn post.......sadhuwad..
ReplyDeleteमित्रों - डेबी से बात हुई. वो मन और शरीर, दोनों से स्वस्थ हैं. नौकरी खोज रही हैं, आई बी एम् के ही दूसरे टीम में कुछ उम्मीद बनी है. मैंने उनको आप सभी के दिए हुए शुभकामना सन्देश दे दिए थे, भाव विभोर हो उठीं. आप सब तक धन्यवाद पहुंचाने को कहा है! आत्मा बहुत प्रसन्न है आज!! मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आप सब का मेरी ओर से भी बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteहूँ! वैराग्य के चन्द रूपों में से एक है यह भी।
ReplyDeleteऐसा होता है हमेशा।
शायद कभी न भी होता हो, शायद उस तरह के लोगों के बारे में लागू न हो यह बात- जिनकी सोच ज़्यादा स्वार्थी टाइप होती हो…
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